प्रतिभा सक्सेना जी की इस रचना पर भोजपुरी का प्रभाव है लेकिन मूल स्वर अवधी का है|
अतः इसका भौगालिक क्षेत्र-निर्धारण कठिन है लेकिन इसमे लोक तत्त्व प्रबल है|
इस गीत में इस लोकमान्यता को आधार बनाया गया है कि जब गंगा उत्तरवाहिनी
(पश्चिमवाहिनी भी)होती है तो उसमे स्नान दान आदि का महत्त्व बढ़ जाता है|
- अमित
नैहर की सुधि अइसी उमडल हिया माँ ब्याकुल उठे हिलकोर , आगिल क मारग बिसरली रे गंगा घूम गइलीं मइके की ओर ! * बेटी को खींचे रे मइया का आँचल टेरे बबा का दुलार , पावन भइल थल ,पुन्यन भरी भइली उत्तरवाहिनी धार* ! जहि के अँगनवा में बचपन बिताइन बाँहन के पलना में झूलीं तरसे नयन,जुग बीते न देखिन, जाइत बहत चुप अकेली ! * केतन नगर , वन ,पथ पार कइले मिली ना बिछुडी सहिलियाँ, मारग अजाना बही जात गंगिया अकेली न भइया- बहिनियाँ ! कौनों दिसा बहि गइली मोरी जमुना,कैसी उठी रे मरोर ! मइया हिरानी रे ,बाबा हिराने जाइल परइ कौने ठौर ! * ब्रज रज रचे तन, श्याम मन धरे मगन , देखिल जमुन प्रवाह, दूरइ ते देखिल जुडाय गइली गंगा,अंतर माँ उमडिल उछाह ! जनम की बिछुडी बहिनी मिलन भेल , झलझल नयन लीने मूँद, पलकन से बहबह झर- झर गिरे, रुक पाये न अँसुआ के बूंद ! * व्याकुल ,हिलोरत दुहू जन लिपटीं उमडिल परेम परवाह, दूनों ही बहिनी भुजा भर भेंटिल,तीरथ भइल परयाग ! दोनो के अँसुआ बहल गंगा-जमुना,इक दूजे में मिल हिरानी , धारा में धारा समाइल रे अइसे ,फिर ना कबहुँ बिलगानी ! * लहरें- लहर सामर संग उज्जल गंगा-जमुन का मिलाप अइसी मिलीं कबहूँ ना बिछुडलीं सीतल भइल तन ताप ! हिय माँ उमड नेह ,कंपित भइल देह गंगा भईं गंभीर चल री सखी,मोर बहिनी चलिय जहँ सागर होइल सरीर ! * प्रतिभा सक्सेना.