Monday, October 5, 2009

संबध (मैथिली गीत) - श्यामल सुमन

परिचयः
नाम :  श्यामल किशोर झा  लेखकीय नाम :  श्यामल सुमन 
जन्म तिथि:  10.01.1960   जन्म स्थान :  चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार
शिक्षा :  स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी
तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा
वर्तमान पेशा :  प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर
साहित्यिक कार्यक्षेत्र :  छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित।स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।अंतरजाल पत्रिका "अनुभूति, साहित्य कुञ्ज, कृत्या, हिन्दी नेस्ट, युग मानस, साहित्य शिल्पी, हेलो मिथिला, मिथिला आ मैथिल आदि में अनेक रचनाएँ प्रकाशित।
गीत ग़ज़ल संकलन प्रेस में प्रकाशनार्थ
प्राक्कथन:  सुमन जी के अनुसार यह दरभंगा, मधुबनी, सहरसा आदि क्षेत्रों में बोली जाने वाली मैथिली है। वैसे साहित्यिक जगत में यही मैथिली प्रयुक्त होती है। बोलचाल में कुछ आंचलिक अंतर हो सकते हैं। पाठकों की सुविधा के लिये खड़ीबोली में भी इस गीत का अर्थ सुमन जी द्वारा दिया गया है प्रत्येक पद के अंत में। - अमित

संबंध
साँच जिनगी मे बीतल जे गाबैत छी।
वेदना अछि हृदय मे सुनावैत छी।।
साँच जिनगी----------

(इस जिन्दगी घटित घटनाओं को गीत में गा रहा हूँ और उससे उपजे अपने हृदय की वेदना सुना रहा हूँ।)
कहू माता के आँचर मे सुख जे भेटल।
चढ़ैत कोरा जेना सब हमर दुख मेटल।
आय ममता उपेक्षित कियै राति दिन।
सोचि कोठी मे मुँह कय नुकाबैत छी।।
साँच जिनगी----------

(माँ के आँचल में हमने कितना सुख पाया? उनके गोद (कोरा) में चढ़ते ही मानो संसार के सारे दुख मिट गए, लेकिन वही माता आज घर घर में उपेक्षित क्यों है? यही सोचकर कवि अपना मुँह कोठी {ग्रामीण इलाकों में प्राचीन काल से अन्न आदि रखने केलिए मिट्टी का बना बड़ा पात्र} में छुपाना चाहता है)
खूब बचपन मे खेललहुँ बहिन भाय संग।
प्रेम सँ भीज जाय छल हरएक अंग अंग।
कोना संबंध शोणित के टूटल एखन?
एक दोसर के शोणित बहाबैत छी।।
साँच जिनगी----------

(अपने बचपन में बहन भाई संग खेले गए खेल और बिताए क्षण को कवि भावुक होकर याद करता है और कहता है कि उन दिनों भाई बहन के आपस के प्रेम से शरीर का हर अंग भींग जाता था अर्थात् प्रेममय हो जाता था लेकिन वही खून के रिश्ते आज खूनी रिश्ते में कैसे बदल गए? भाई ही भाई का खून (शोणित) कैसे बहा रहा है?)
दूर अप्पन कियै अछि पड़ोसी लगीच।
कटत जिनगी सुमन के बगीचे के बीच।
बात घर घर के छी इ सोचब ध्यान सँ।
स्वयं दर्पण स्वयं केँ देखाबैत छी।।
साँच जिनगी----------

जिनसे खून का संबंध था, आज वो भावात्मक रूप से दूर हो गये और दूसरे जो पड़ोसी हैं उनसे अक्सर अपनों के वनिस्बत नजदीकी अधिक बढ़ जाती है। कवि अपने तखल्लुस सुमन का प्रयोग करते हुए कहता है कि सुमन की जिन्दगी तो आखिर बगीचे में ही कटेगी। ये किसी एक घर की घटना नहीं है बल्कि सब घरों में यही हो रहा है और कवि अपने ही दर्पण में ही अपना चेहरा देखकर इस सामाजिक विघटन का गीत गाकर लोगों में संदेश भेजने की कोशिश करता है)

2 comments:

  1. bahut sundar rachna likhi hai aapne, sach me blogging ek shubh sanket hai hamari bhashaon ke punarjeevan ke liye. badhai

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  2. सुमन जी,
    बहुत नीक लागल पढि क. नीक बात, सुनर ढंग से कहने छी अहाँ.

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