Tuesday, October 13, 2009

गंगा -जमुना - प्रतिभा सक्सेना.

प्रतिभा सक्सेना जी की इस रचना पर भोजपुरी का प्रभाव है लेकिन मूल स्वर अवधी का है|
अतः इसका भौगालिक क्षेत्र-निर्धारण कठिन है लेकिन इसमे लोक तत्त्व प्रबल है| 
इस गीत में इस लोकमान्यता को आधार बनाया गया है कि जब गंगा उत्तरवाहिनी
(पश्चिमवाहिनी भी)होती है तो उसमे स्नान दान आदि का महत्त्व बढ़ जाता है| 
- अमित

नैहर की सुधि अइसी उमडल हिया माँ ब्याकुल उठे हिलकोर ,
आगिल क मारग बिसरली रे गंगा घूम गइलीं मइके की ओर !
*
बेटी को खींचे रे मइया का आँचल टेरे बबा का दुलार ,
पावन भइल थल ,पुन्यन भरी भइली उत्तरवाहिनी धार* !
जहि के अँगनवा में बचपन बिताइन बाँहन के पलना में झूलीं 
तरसे नयन,जुग बीते न देखिन, जाइत बहत चुप अकेली !
*
केतन नगर , वन ,पथ पार कइले मिली ना बिछुडी सहिलियाँ,
मारग अजाना बही जात गंगिया अकेली न भइया- बहिनियाँ !
कौनों दिसा बहि गइली मोरी जमुना,कैसी उठी रे मरोर !
मइया हिरानी रे ,बाबा हिराने जाइल परइ कौने ठौर !
*
ब्रज रज रचे तन, श्याम मन धरे मगन , देखिल जमुन प्रवाह,
दूरइ ते देखिल जुडाय गइली गंगा,अंतर माँ उमडिल उछाह !
जनम की बिछुडी बहिनी मिलन भेल , झलझल नयन लीने मूँद,
पलकन से बहबह झर- झर गिरे, रुक पाये न अँसुआ के बूंद !
*
व्याकुल ,हिलोरत दुहू जन लिपटीं उमडिल परेम परवाह,
दूनों ही बहिनी भुजा भर भेंटिल,तीरथ भइल परयाग !
दोनो के अँसुआ बहल गंगा-जमुना,इक दूजे में मिल हिरानी ,
धारा में धारा समाइल रे अइसे ,फिर ना कबहुँ बिलगानी !
*
लहरें- लहर सामर संग उज्जल गंगा-जमुन का मिलाप
अइसी मिलीं कबहूँ ना बिछुडलीं सीतल भइल तन ताप !
हिय माँ उमड नेह ,कंपित भइल देह गंगा भईं गंभीर 
चल री सखी,मोर बहिनी चलिय जहँ सागर होइल सरीर !
* प्रतिभा सक्सेना.

 



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