Saturday, October 3, 2009

नचारी - प्रतिभा सक्सेना

प्रतिभा सक्सेना जी की यह नचारी कन्नौज क्षेत्र में प्रचिलित ब्रजभाषा में है। कृपया इसका रसास्वादन करें और टिप्पणी दें।
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संकर को पोटि के पियाय दियो घोर विष
असुरन को छल से छकाय दई वारुणी 
मिलि-बाँटि देवन सों आप सुधा पान कियो 
मणि सै लीन्हीं अरु लक्ष्मि मन-भावनी 
*
तेरो ही प्रताप सारे खारे समुन्दर भे 
तेरी इहै बान तू सबै का नचावत है 
आप छीर -सागर में आँख मूँद सोय जात
लच्छिमी से आपुने चरन पलुटावत है 
*
नारद सो भक्त ता की छाती पे मूँग दरी 
सभा माँझ बानर को रूप दे पठाय के 
उचक-उचक रह्यो मोहिनी बरैगी मोंहिं
बापुरो खिस्यायो तोसों सबै विधि हार के 
*
अब सो बिगार मेरो कर्यो ना हे रमापति ,
तोरी सारी पोल नाहिं खोलिहौं बखान के 
ढरे रहो मो पे नहीं चुप्पै रहौंगी नहिं
खरी-खरी बात बरनौंगी जानि-जानि कै 
*
कोऊ उपाओ मेरे काज सुलटाय देओ 
स्वारथ न मेरो ,सामर्थ तेरो ही दियौ 
ऐसो न होय तो से वीनती है मोर 
कहूँ धरो रह जाय मेरो सारो करो-धरो!
*
तोरा विसवास तो अब तब ही करौंगी 
जब देख लिहौं के तू मेरे संग ठाड़ो आय के 
चोर रे कन्हैया,चाल खेलत जनम बीत्यो 
करौंगी सिकायत उहाँ जसुमति से जाय के!
*प्रतिभा सक्सेना

8 comments:

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  2. बहुत हीं सुन्दर लगी ये नचारियाँ ।

    गुलमोहर का फूल

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  3. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

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  4. सुन्दर. ऐसे ही विविधता लाते रहे.

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  5. मनोज जी वर्ड वेरीफिकेशन इस ब्लॉग पर शुरू से ही नहीं है अतः हटाने का प्रश्न ही नहीं है। लगता है कि थोक में टिप्पणी देने के चक्कर में सभी पर एक ही संदेश पेस्ट कर रहे हैं।:)

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  6. upalambh bhi bhakti rus ki hi ek vidha hai jiska diigdarshan is kavita/ nachari me hota hai. lekhika ko saadhuwad.

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  7. इस नए ब्‍लाग के साथ हिन्‍दी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. उम्‍मीद करती हूं .. आपकी रचनाएं नियमित रूप से पढने को मिलती रहेंगी .. शुभकामनाएं !!

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