Sunday, October 4, 2009

भय बिनु होय न प्रीति - पारुल पु्खराज

 पारुल जी की यह रचना कानपुर-उन्नाव-लखनऊ आदि में प्रचिलित ब्रजमिश्रित अवधी में हैं। इसकी एक विशिष्ट पहचान होने के कारण इसे कनपुरिया भी कहते हैं।

भय बिन होय न प्रीत
के भईया  भय बिन होये न प्रीत,
हमका कौन्हों दे बताये
प्रीत के कैसन रीत ई भईया
भय बिन होये न प्रीत?

लैइके  लाठी सरि पै बैठो
धमकावो- दुत्कारौ-पीटौ
दाँत पीसि कै खूब असीसौ
नेह लगाय के गल्ती किन्हौ
पुनि पुनि दुहिराओ  इब भईया
प्रीत के ऐसन रीत
भय बिन होय न प्रीत--

हमरा  तुमसे प्रेम अकिंचन
राधा कीनहिन स्याम से जैसन
अब तुम अहिका कर्ज उतारौ
इधर-उधर ना आउर निहारौ
गाँठ बान्धि कै धयि लयो ध्यान
प्रीत के ऐसन रीत
भय बिन होये न प्रीत--

हिरनिन ऐसन तुम्हरे नैन
कोयल जैसन तुम्हरे बैन
बतियाओ तो फूल झरैं
मुस्काओ तो कंवल खिलैं
होवे तुमका कितानेहू पीर
या सब भयी  हमरी  जागीर
प्रीत के ऐसन रीत
भय बिन होये न प्रीत …


पारुल पुखराज

4 comments:

  1. दिल्ली-६ का "गेंदा फूल" मूल गीत
    http://havedfun.blogspot.com/2009/10/blog-post_04.html

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  2. गाँव की मिटटी लिए महकता सा प्रीति-गीत ! इसे गाया भी हो पारुल जी आपने तो ज़रा softcopy भेजिए या यही लगा दीजिये :)

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  3. shardula ji

    record ki thii...magar lifelogger ke bhet chadh gayi...ab to mere pass bhi nahi hai

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